बॉलीवुड की 10 फिल्में, जिन्होंने बदलकर रख दिया दौर! हर फिल्म रही ब्लॉकबस्टर, मेकर्स गिनते रह गए नोट
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Bollywood Movies That Defined Era: बॉलीवुड सिर्फ फिल्में नहीं, बल्कि वो कहानियां देता है जो पीढ़ियों तक याद रहती हैं. कुछ फिल्में ऐसी हैं, जिन्होंने न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर झंडे गाड़े, बल्कि एक पूरे दौर को परिभाषित कर दिया. बॉलीवुड ने दशकों में समाज की धड़कनों को परदे पर उतारा है. हर युग की कुछ फिल्में ऐसी रहीं जो न सिर्फ सुपरहिट हुईं, बल्कि फैशन, डायलॉग्स, संगीत और सामाजिक मूल्यों को नया आयाम दे गईं.

नई दिल्ली. बॉलीवुड का इतिहास सिर्फ फिल्मों का नहीं, बल्कि देश के सांस्कृतिक सफर का दस्तावेज भी है. हर दौर की कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जो सिनेमा के परदे को लांघकर समाज के दिल में अपनी जगह बना लेती हैं और एक पूरी पीढ़ी की सोच, फैशन और भावनाओं की परिभाषा बन जाती हैं. मदर इंडिया, शोले से लेकर ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’ तक ऐसी फिल्में हिंदी सिनेमा ने दी, जिन्होंने न सिर्फ बॉक्स ऑफिस के सारे रिकॉर्ड तोड़े, बल्कि दर्शकों के दिलों पर भी अमिट छाप छोड़ी. ये फिल्में अपनी कहानी, निर्देशन, अभिनय, और सामाजिक प्रभाव के कारण यादगार बन गईं. चलिए बताते हैं उन्हीं यादगार फिल्मों के बारे में जिन्होंने न सिर्फ अपना जमाना रचा, बल्कि आने वाले दशकों के बॉलीवुड सिनेमा की नींव भी तैयार की. मेकर्स के लिए ये सफलता की कहानी थी और दर्शकों के लिए यादगार पल.

इस लिस्ट में सबसे पहला नाम है साल 1957 में आई फिल्म ‘मदर इंडिया’. स्वतंत्र भारत का प्रतीक. यह फिल्म भारतीय नारीत्व और बलिदान का प्रतीक बनी. इसने सामाजिक मुद्दों जैसे गरीबी और सामंती व्यवस्था को उजागर किया. ऑस्कर नामांकन हासिल करने वाली ये पहली भारतीय फिल्मों में से एक रही. नरगिस की ‘मां’ के रोल ने ग्रामीण संघर्ष को अमर कर दिया. ये बॉलीवुड की वो क्लासिक फिल्म रही, जिसके गानों से लेकर कहानी तक की चर्चा आज की पीढ़ी भी करती है. इस फिल्म का आईएमबीडी रेटिंग 7.8 है.

70 के दौर में ‘अंग्री यंग मैन’ का उदय हुआ. अमिताभ बच्चन की एंग्री इमेज ने जहां सामाजिक मुद्दों पर फिल्मों का नया अध्याय खोला. वहीं, ‘शोले’ जैसी फिल्मों के साथ ‘मसाला’ फिल्मों की शुरुआत हुई. इसमें एक्शन, ड्रामा और दोस्ती की कहानी को एक नया आयाम दिया. ‘गब्बर सिंह’ जैसे किरदार और ‘कितने आदमी थे’ जैसे डायलॉग्स आज भी लोकप्रिय हैं. मजेदार बात है कि इन दोनों फिल्मों में अमिताभ बच्चन नजर आए.

80 के दौर में एक्शन के साथ ड्रामा, ऐतिहासिक, संगीतमय फिल्में बॉलीवुड ने दी. 1981 में आई रेखा की ‘उमराव जान’ वो फिल्म जिसने अपनी कहानी, अभिनय, संगीत और निर्देशन के लिए खूब प्रशंसा बटोरी. मुजफ्फर अली के निर्देशन में रेखा का अभिनय और खय्याम का संगीत उस युग की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक बना. फिल्म ने तवायफों की जटिल जिंदगी को संवेदनशीलता से दर्शाया, जो सामाजिक रूढ़ियों को चुनौती देती थी. लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब, उर्दू शायरी और मुजरा इसकी आत्मा थे. ‘दिल चीज क्या है’ जैसे गाने आज भी अमर हैं. इसने समानांतर और व्यावसायिक सिनेमा को जोड़ा, जिसने 80 के दशक में कला और मनोरंजन का अनूठा संगम स्थापित किया.

इस लिस्ट में चौथा नाम हैं साल 1988 में आई फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’. इसने भारतीय सिनेमा में रोमांटिक फिल्मों का नया युग शुरू किया. मंसूर खान के निर्देशन में बनी यह फिल्म युवा प्रेम और पारिवारिक विरोध की कहानी थी, जिसने 80 के दशक के युवाओं को गहराई से प्रभावित किया. आमिर खान और जूही चावला की ताजगी भरी जोड़ी ने स्टारडम की नई परिभाषा गढ़ी. नदीम-श्रवण का संगीत, जैसे ‘पापा कहते हैं’ और ‘ऐ मेरे हमसफर’ सुपरहिट रहा. इसने पारिवारिक मूल्यों और आधुनिक प्रेम को जोड़कर हिंदी सिनेमा को वैश्विक दर्शकों तक पहुंचाया.

1994 की ‘अंदाज अपना अपना’ ने भारतीय सिनेमा में हास्य की नई शैली स्थापित की. राजकुमार संतोषी के निर्देशन में बनी यह फिल्म अपनी अनोखी कॉमेडी और यादगार किरदारों के लिए जानी जाती है. आमिर खान और सलमान खान की जोड़ी ने अमर और प्रेम के रूप में हंसी का तूफान ला दिया. ये रात और ये दूरी जैसे गाने और क्राइम मास्टर गोगो जैसे डायलॉग्स ने 90 के दशक की युवा संस्कृति को परिभाषित किया. इस कल्ट क्लासिक ने हल्के-फुल्के मनोरंजन को मुख्यधारा में लाकर दर्शकों का दिल जीता.

90 के ही दशक में एक और फिल्म रिलीज हुई. फिल्म का निर्देशन आदित्य चोपड़ा ने किया और वो फिल्म है ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’. DDLJ ने बॉलीवुड रोमांस को पूरी तरह बदल कर रख दिया. शाहरुख खान और काजोल की जोड़ी ने ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री की नई मिसाल कायम की. फिल्म ने पारिवारिक मूल्यों और आधुनिक प्रेम के बीच संतुलन दिखाया, जिससे भारतीय और प्रवासी दर्शक दोनों जुड़ सके. ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ ने 90 के दशक के युवाओं के प्यार, रिश्तों और सपनों को परिभाषित किया, और इसे सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक संस्कृति का प्रतीक बना दिया.

1998 में आई ‘सत्या’ ने बॉलीवुड में क्राइम-थ्रिलर की दिशा ही बदल दी. राम गोपाल वर्मा की यह फिल्म मुंबई की अंडरवर्ल्ड और अपराध की सच्चाई को बेहद रियलिस्टिक अंदाज में पेश करती है. मनोज बाजपेयी का भीखू महात्रे और जे.डी. चक्रवर्ती का सत्या किरदार अविस्मरणीय बने. अनुराग कश्यप और सौरभ शुक्ला की पटकथा ने अपराध की दुनिया को बारीकी से उकेरा . विशाल भारद्वाज का संगीत और सपने में मिलती है जैसे गाने लोकप्रिय हुए. इसने 90 के दशक में गैंगस्टर ड्रामा जॉनर को परिभाषित किया.

साल 2001 में ‘लगान’, ‘कभी खुशी कभी गम’ और ‘दिल चाहता है’ जैसी फिल्में रिलीज हुईं, जिन्होंने भारतीय इतिहास और खेल भावना, फैमिली ड्रामा और रिश्तों की अहमियत के साथ मॉडर्न फ्रेंडशिप और उनकी लाइफस्टाइल को दिखाया. ये तीनों फिल्में अपने समय की सोच भावनाओं और समाज पर गहरी छाप छोड़ गईं.

2019 में रिलीज हुई ‘गली बॉय’ ने भारतीय सिनेमा में रैप और हिप-हॉप संस्कृति को मुख्यधारा में ला दिया. रणवीर सिंह और आलिया भट्ट की दमदार एक्टिंग ने कहानी को और प्रभावी बनाया. फिल्म मुंबई की झोपड़पट्टी से निकलकर बड़े सपने देखने वाले युवाओं की जद्दोजहद को दर्शाती है. जोया अख्तर के निर्देशन और गानों ने युवाओं को अपनी आवाज उठाने और सपनों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी. ‘अपना टाइम आएगा’ जैसा डायलॉग हर युवा का नारा बन गया. इस फिल्म ने भारतीय युवाओं की असलियत और उनकी महत्वाकांक्षा को बड़े पर्दे पर सशक्त रूप से परिभाषित किया.